Monday, April 25, 2011

हाँ! शायद चाँद समझता है

हाँ! शायद चाँद समझता है
जब भी उसको देखता हूँ
वो मुझको देख के हँसता है
हाँ शायद चाँद समझता है

 

वरना क्यूँ मेरा दिल बहलाने
अपनी चांदनी के रंग बिखराता
इस बहती ठंडी हवा से मुझको
सुकून के दो मीठे बोल सुनाता

 

शायाद वो भी कभी तरसा है
तारों में वो भी अकेला है
अपना हाल छुपाने को
बादल के पीछे छुपता है

 

हाँ शायद चाँद समझता है…