Tuesday, May 3, 2011

विषय : जिंदगी, समयसीमा : जीवनकाल

याद नहीं पर जाने कब से
बैठे कुछ पहचाने से कमरे में
हाथ में थामे कलम सोचते
जवाब जिंदगी के इम्तिहान के

 

इस इम्तिहान के सब पन्ने रंगीन हैं
हर रंग की स्याही मिलती है
केवल जवाब के अंक नहीं होते
रंगों का मिलना भी ज़रूरी है

 

न मिटा सके, न बदल सकें
जवाब की स्याही अनमिट है
सही - गलत हर एक जवाब से
जीवन की कहानी बनती है

 

कुछ सवालों के विकल्प अनगिनत
और कुछ के कोई विकल्प नहीं
कुछ सवाल इतने उलझे से
हर सवाल उनमें उलझा सा

 

किसी जवाब के इंतज़ार में
कहीं वक्त न पूरा गुज़र जाए
इस कमरे से बहार आने पर
कोई अफ़सोस न रह जाए

 

ना जानूँ मैं क्या है इसमें
सफल - विफल का पुरस्कार...
आज सवालों में फिर उलझा हूँ,
पर बैठा हूँ
हाथ में थामे कलम सोचते
जवाब जिंदगी के इम्तिहान के