टूटी दीवारों के मलबे से
बिखरी खिड़की के काँच चमकते हैं
नवनिर्माण को न्योता देते
कुछ खम्बे अब भी अडिग खड़े हैं
क्या निर्माण में था कोई खोट छुपा?
या आंधी का ही था वेग बड़ा?
या तीष्ण हवा के प्रबल प्रवाह में
घर बनाने का निर्णय गलती था?
आंधी को फिर भी करें नमन
प्रकृति नियमों से चलने को बाधित
हार तो तब, जब क्षींण हो संबल
मन शीशमहल के हम ही अधिकारी
विध्वंस की लीला के सजे रंगमंच पर
कोई नहीं कर सकता बिन इच्छा प्रक्षेप
किसी अदृश्य निर्देशक को नहीं अनुमति
हमारे अभिनय में करे हस्तक्षेप.
बिखरी खिड़की के काँच चमकते हैं
नवनिर्माण को न्योता देते
कुछ खम्बे अब भी अडिग खड़े हैं
क्या निर्माण में था कोई खोट छुपा?
या आंधी का ही था वेग बड़ा?
या तीष्ण हवा के प्रबल प्रवाह में
घर बनाने का निर्णय गलती था?
आंधी को फिर भी करें नमन
प्रकृति नियमों से चलने को बाधित
हार तो तब, जब क्षींण हो संबल
मन शीशमहल के हम ही अधिकारी
विध्वंस की लीला के सजे रंगमंच पर
कोई नहीं कर सकता बिन इच्छा प्रक्षेप
किसी अदृश्य निर्देशक को नहीं अनुमति
हमारे अभिनय में करे हस्तक्षेप.